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31 May International No Tobacco Day | दुरुपयोग से तंबाकू, बदनाम है बेचारी ~डॉक्टर रामानुज पाठक

31 May International No Tobacco Day

31 May International No Tobacco Day

31 May International No Tobacco Day / Author Dr Ramanuj Pathak: तंबाकू का पौधा,निकोटियाना संभवतः किसी अन्य जड़ी बूटी की तुलना में अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार रहा है,वर्तमान में तंबाकू धूम्रपान से दुनिया भर में 80 लाख से अधिक सालाना मौते हो रही हैं,और यदि वर्तमान धूम्रपान की प्रवृति जारी रहती है तो वार्षिक मृत्यदर 2030तक लगभग 1करोड़ से अधिक हो जायेगी। इसमें मौखिक उपयोग से होने वाले कैंसर से होने वाली मृत्यदर को शामिल कर लिया जाय तो आंकड़ा दो गुना बढ़ जाता है। निःसंदेह तंबाकू दुनिया में अकाल मृत्यु और बीमारी का महत्वपूर्ण परिहार्य कारण है।तंबाकू के पत्तों और उसके जलने से उत्पन्न धुएं में लगभग 4हजार से अधिक रसायन होते हैं,जिनमे से सबसे ज्यादा निकोटीन है।निकोटीन एक रासायनिक यौगिक है,यह शक्तिशाली परानूकम्पीसम(पैरासंपेथोमिमिटिक)एल्कलॉइड तथा एक उद्दीपक औषधि (ड्रग)है,यह सोलेनेसी कुल के पौधो में पाया जाता है।निकोटीन कीड़े मारने में इस्तेमाल की जाने वाली दवा में होता है।

एक सिगरेट में 9मिलीग्राम निकोटीन होता है जो जलकर 1मिलीग्राम रह जाता है निकोटीन सीधे नुकसान नहीं पहुंचाता ,लेकिन यह सैकड़ों केमिकल के साथ रिएक्शन कर टार बनाता है जो फेफड़ों के ऊपर परत के रूप मे चढ़कर उन्हें खत्म करता है।1ग्राम तंबाकू में निकोटीन का स्तर 13.7से 23.2मिलीग्राम तक होता है।इसके अलावा तंबाकू के धुएं में अमोनिया ,एसीटोन ,आर्सेनिक, बेंजीन,फॉर्मल्डडिहाइड ,एसिटिक एसिड,फास्फोरिक प्रोटिक एसिड ,हाइडोजेन साइनाइड ,लेड,रेडियोधर्मी पदार्थ,नाइट्रोसामिन,कार्बन मोनोऑक्साइड, पॉलिसाएक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन आदि शामिल हैं।निकोटीन को पहली बार 1828में पासेल्ट और रीमैन द्वारा तंबाकू के पत्तों से अलग किया गया था।यह निकोटीन ही है जो धूम्रपान करने वालों को,तंबाकू सेवन करने वालो को तंबाकू का आदी बना देता है।

31 May International No Tobacco Day 2024

और यह रसायन छोटी मात्रा में भी घातक होता है।जब तंबाकू का धुआं बीड़ी, सिगरेट,हुक्का,सिगार,द्वारा सांस में लिया जाता है या तंबाकू सीधे जर्दा,खैनी,पान मसाला,गुटखा ,पान आदि में डालकर खाई जाती है तो निकोटीन शरीर के हर अंग में तेजी से पहुंचता है।मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र छोटी खुराक से उत्तेजित होते हैं और बड़ी खुराक से उदास होते हैं।

निकोटीन ह्रदय गति और रक्तचाप को बढ़ाता है,और धूम्रपान करने वालों या सीधे तंबाकू सेवन करने वालो में घनास्त्रता और एथेरोमा की अधिकता में सीधे योगदान दे सकता है।फिर भी लोगो को धूम्रपान रोकने में निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी का उपयोग किया जाता है,क्योंकि यह उन्हें तंबाकू के धुएं की कई अन्य हानिकारक रसायनों से बचाता है।उदाहरण के लिए कार्सिनोजेनिक पॉलिसाएक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन (कैंसर उत्पन्न करने वाले हानिकारक रसायन)और एननाइट्रोसो यौगिक , एक्रोलिन जैसे उत्तेजक पदार्थ , बेंजीन,फॉर्मल्डिहायड,अमोनिया,एसिटोन,एसिटिक एसिड,और कार्बन मोनोऑक्साइड आदि।इस बात को प्रमाणित करने में की तंबाकू सेवन से, धूम्रपान करने से,ह्रदय रोग, फेफड़ों की बीमारी होती है तकरीबन सौ साल लगे।

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आज जहां तंबाकू को व्यसन, लत, नसा ,का प्रमुख कारण माना जाता है,इसके दुष्प्रभावों से बचाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 31मई को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है।यह अत्यंत दुखद है कि मानव सभ्यता ने “तंबाकू “जैसी जड़ी बूटी के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है, बीसवीं शताब्दी तक एक औषधि के रूप में प्रयुक्त होने वाली तंबाकू ,उसके तने,पत्ते,जड़े,बीज,पुष्प,आज महाविनाश ,महामारी,बीमारी का पर्याय माने जाने लगे हैं।देखिए कहानी तंबाकू की ऑफ द रिकॉर्ड,15वी शताब्दी में जब नई दुनिया में स्वदेशी आवादी द्वारा निकोटियाना (तंबाकू का पौधा)का उपयोग पहली बार कोलंबस द्वारा देखा गया था और पौधे को यूरोप लाया गया था,उस समय सभी जड़ी बूटियों को संभावित चिकित्सीय गुण माना जाता था,और इस नए पौधे का उपयोग व्यापक उपचार के लिए किया जाता था।वास्तव में निकोटियना ने एक रामबाण औषधि के रूप में ख्याति प्राप्त की,जिसे पवित्र जड़ी बूटी और,”भगवान का उपाय” कहा गया।

इस नई खोजी गई जड़ी बूटी के लिए ट्यूडर डॉक्टरों के उत्साह को समझने के लिए पृष्ठ भूमि में चलने की आवश्कता होगी।प्रिकोलमबियन अमेरिका में निकोटियाना की 60से ज्यादा प्रजातियां थीं,कुछ प्रजातियां आस्ट्रेलिया की मूल प्रजातियां थीं और अधिकांस अमेरिका की स्वदेशी प्रजातियां थीं।निकोटियाना टेबेकम,जो अब व्यावसायिक तंबाकू उत्पादन के लिए उपयोगी पौधा है,संभवतः दक्षिण अमेरिकी मूल का है,और अन्य प्रमुख प्रजाति निकोटियाना रस्टीका है,जिसे दुनिया भर में ले जाया गया था।

1492में कोलंबस ने पाया की अमेरिकी मूल निवासी तंबाकू को उगा रहे हैं,और उसका उपयोग कर रहे हैं।कभी कभी उसके सुखद प्रभाओ के लिए और साथ ही अक्सर विभिन्न बीमारियों के इलाज हेतु।उनके कुछ नविको ने क्यूबा और हैती के मूल निवासियों को तंबाकू की पत्तियों को धूम्रपान करते हुए देखा,और बाद के यूरोपीय खोजकर्ताओ और यात्रियों ने इन दोनो टिप्पणियों की पुष्टि की।तंबाकू का नाम मूल रूप से गलती से लागू किया गया था वास्तव में यह शब्द बेंत के पाइप को प्रदर्शित करता है जिसे टबैको या तबाको कहा जाता है।

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नासिका छिद्रों के लिए दो शाखाएं होती है जिसका उपयोग मूल अमरीकियो द्वारा तंबाकू के धुंए को सूंघने के लिए किया जाता था।तंबाकू को ही पेटम, बेटम,कोगियोबा,कोहोबा कहा जाता था,और ये नाम कभी कभी बाद में जड़ी बूटियों या फार्माकोपीया में दिखाई देते हैं।15अक्टूबर 1492की शुरुआत में कोलंबस ने नोट किया की सूखे पत्ते फार्डिनेडिना द्वीप के पास एक डोंगी में एक आदमी द्वारा ले जाया गया था क्योंकि उन्हें उनके स्वास्थ्य के लिए सम्मानित किया गया था उसी वर्ष उनके दल के दो सदस्यों ने लोगो को एक जलती हुई मसाल ले जाते हुए क्यूबा में देखा जिसमे तंबाकू था जिसका उद्देश्य रोग की थकान दूर करने के लिए ,वातावरण कीटाणु रहित करने में मदद करने में था यह तथ्य बाद में उभरा।उस समय तंबाकू के पत्तो का धुंआ सुघने पर संवेदना शून्य होती थी अतः संवेदनहारी के रूप में तंबाकू के पत्तो का उपयोग ट्रैपनिंग ऑपरेशन में किया जाता रहा।

तंबाकू संभवतः चूने या चाक के साथ मिश्रित कर मूल अमेरिकी आबादी में दांतो को सफेद करने के लिए टूथपेस्ट के रूप में इस्तेमाल किया गया था,जैसा कि सन 1500में नीनों और गुएरा और वेस्पूची द्वारा वेनेजुएला में लगभग एक ही समय में देखा गया था।यह टूथपेस्ट के रूप में तंबाकू का उपयोग आज भी भारत में जारी है, जहां पीड़ा हुआ तंबाकू चूर्ण या मशेरी दांतो पर रगड़ा जाता है और तंबाकू टूथपेस्ट का व्यावसायिक रूप से विपणन किया जाता है। सन1500तक शायद तंबाकू रामबाण औषधि के रूप में प्रसिद्ध हो गई थी।ब्राजील में उसी वर्ष एक पुर्तगाली खोजकर्ता पैड्रो अल्वरेज कैबरल ने अल्सर युक्त फोड़े , फिस्तुलस,घावों अघुलनसील पोलीप्स और कई अन्य बीमारियो में उपचार के लिए इसी जड़ी बूटी के उपयोग की सूचना दी।

उन्होंने इसे शक्तिशाली पवित्र जड़ी बूटी कहा,इसके अलावा मूल अमेरिकी आबादी द्वारा तंबाकू के औषधीय प्रयोग की कई रिपोर्ट सामने आई।उदाहरण के लिए 1529में एक स्पेनिश मिशनरी पुजारी बर्ना डी नो डी सहगून ने चार मैक्सिकन चिकित्सको से औषधीय प्रयोजनों के लिए तंबाकू के उपयोग की जानकारी एकत्रित की थी।उन्होंने दर्ज किया कि तंबाकू की ताजी हरी पत्तियों की गंध को सांस लेने से लगातार सर दर्द में राहत मिलती है।

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सर्दी जुकाम और नजला के लिए तंबाकू के हरे या सूखे पत्तोको मुंह के अंदर घिसना चाहिए ।गले की ग्रंथियों के रोग और घावों के लिए कुचले हुए तंबाकू के पत्तो को गर्म करके नमक मिलाकर उसी स्थान पर रखने से घाव ठीक हो जाते हैं। सन 1934में फरनानडू ओकारांजा ने मैक्सिको में 1519से पहले तंबाकू के औषधीय उपयोगों को एंटी डायरिया ,मोदक और दर्द कम करने वाले पदार्थ के रूप में सारांशित कियाथा।उन्होंने लिखा है कि तंबाकू के पत्तो को दर्द से राहत के लिए उपयोग किया जाता था,खांसी से राहत के लिए पावडर के रूप में इस्तेमाल किया जाता था।

घावों और जलन को ठीक करने के लिए स्थानीय रूप से इस को उपयोग किया जाता था। पूर्व अमेरिकी मूल निवासियों द्वारा तंबाकू के उपयोग की कई अन्य रिपोर्ट हैं।उन दिनों जब कई रोगों के उपचार की मांग की जा रही थी और सभी प्रकार की जड़ी बूटियों को आजमाने लायक माना जाता था,एक अपरिचित जड़ी बूटी तंबाकू की प्रतिष्ठित चिकित्सीय प्रभावकारिता की खबर ने बहुत उत्साह पैदा किया।इतना उत्साह था कि स्पेनिश चिकित्सक वनस्पति शास्त्री निकोलस मोनार्डेस ने इसे मूल रूप से 1570के दसक में प्रकाशित एक काम में इसे शामिल किया,उन्होंने लिखा कि तंबाकू में बहुत कुछ है जो एक औषधि में होना चाहिए।इस प्रकार एक बड़े स्तर पर पूरे यूरोप में तंबाकू, चिकित्सको, वनस्पति शास्त्री , खोजकर्ता,मिशनरियों और इतिहासकारों के बीच उत्पादित जड़ी बूटियों में प्रसिद्ध हो गई थी।

1537से 1549के बीच यूरोप और मैक्सिको में प्रकाशित पुस्तकों में आमतौर पर नई दुनिया की स्वदेशी आबादी के बीच तंबाकू के औषधीय उपयोगों का उल्लेख किया गया था,जिसमे एक सहायक औषधि के रूप में सामान्य शारीरिक बीमारियो,सर्दी जुकाम,और बुखार में इसके चिकित्सीय अनुप्रयोग के चश्मदीद गवाह थे ।पाचन के लिए और भूख प्यास की रोकथाम में एक रेचक के रूप में और एक मादक पदार्थ के रूप मे वियना में फूच्स ने 1542में अपने विस्तारित हर्बल लेख में निकोटियाना रस्तिका और निकोटियाना टेबेकम को कारगर साबित किया था।

वनस्पति शास्त्री,चिकित्सक और वैज्ञानिक कोनराड गएसनर ने तंबाकू के पत्तो का विश्लेषण किया और इसके औषधीय गुणों और इसकी जहरीली प्रकृति के बारे में बताया ,उन्होंने बताया कि दवा में इस्तेमाल होने वाली कई जड़ी बूटियों के समान तंबाकू में भी जहरीले गुण थे।सबसे दिलचस्प और शायद सबसे भरोसेमंद संकेत नोली-मां -तोंगरे(यह नाम त्वचा में धीरे धीरे फैलने वाले अल्सरिंग घावों को दिया गया था)के उपचार में था ।

बाद के प्रकासनो से पता चलता है लुपस,सिफीलिस के उपचार में भी तंबाकू कारगर साबित हुई,लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रयोग वेसल सेल कैंसर (कृतंक अल्सर)के उपचार में किया गया।1560में लिस्बन में फ्रांसीसी राजदूत जीन निकोट को एक जेल के रखवाले द्वारा एक जड़ी बूटी भेंट की गई थी इसे फ्लोरिडा से लाए गए एक अजीब पौधे के रूप में वर्णित किया गया था।राजदूत ने इसे अपने बगीचे में लगाया था। निकोट को नोली-मां,-तोंगरे(अल्सर घाव)गाल में हुआ जो नाक तक पहुंच गया था जिसमे तंबाकू के पत्तो का रस लगातार दस दिन लगाने पर यह घाव ठीक हो गया था।

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निकोट इस जड़ी बूटी से बहुत प्रभावित था ,बाद में तंबाकू को राजदूत जड़ी बूटी या “निकोटियन” के नाम से जाना जाने लगा था।पेट के अल्सर को भी निकोट ने इसी जड़ी बूटी से ठीक किया,दाद को भी इसी तंबाकू के पौधे की पत्तियों को पीसकर लेप करने से ठीक किया गया।जॉन कोट्टा ने 1612में इस रामबाण औषधि पर टिप्पणी करते हुए लिखा था कि,”यदि इस रामबाण दवा का संयम से उपयोग किया गया तो यह कई बीमारियो का राक्षस बन जायेगा”।पहली बार जॉन वेश्ली की पुस्तक प्रिमिटिव फिजिक प्रकाशित हुई जिसमे कान के दर्दमे राहत के लिए तंबाकू के धुएं को कान में जोर से उड़ा देने को कहा गया और गिरने वाली बीमारी के लिए,बवासीर ठीक करने के लिए चौबीस घंटे पानी में डूबा हुआ तंबाकू के पत्तो को लगाने की सिफारिश की गई।इस तरह की सलाह 1847के संस्करण के अंत तक जारी रही ,यद्यपि सत्रहवीं शताब्दी में डॉक्टरों ने तंबाकू को एक दवा के रूप में अधिक से अधिक अविश्वास किया ,किंतु फिर भी इसका फॉर्माकोलॉजिकल प्रभाव बना रहा।

1828में तंबाकू के पत्तो से निकोटीन को पहली बार अलग किया गया,चिकित्सा जगत सामान्य उपचार के रूप में तंबाकू के प्रति और अधिक अविस्वासपूर्ण हो गया था,कहा गया कि निकोटीन खतरनाक अल्कालोइड है ।निकोटीन का प्रयोग अकेले ही किया जाने लगा और खुराको के मापने का अधिक प्रयास किया जाने लगा।हालांकि स्ट्रैकिन विषाक्तता,कब्ज जैसी स्थितियों,गला घोटने वाली हर्निया ,टेटनस ,हाइड्रोफोबिया और कीड़े काटने के उपचार में तंबाकू का उपयोग जारी रहा।स्टीवर्ट ने तंबाकू के उपचार संबंधित 128मामलो का विश्लेषण किया तथा लिखा कि तंबाकू से 97उपचार सफल ,4घातक ,10 में रोगी में जहर फैला ,17अन्य परिणाम।स्टीवर्ट द्वारा पहचाने गए सफल प्रयोगों में तंबाकू द्वारा उपचार से ,जहरीले सरीसृप और कीड़े काटने ,उन्माद ,दर्द,नसों का दर्द ,स्वर यंत्र ऐंठन ,गठिया, बालो की वृद्धि ,धनुस्तंभ,दाद,कृतक अल्सर,अल्सर घाव ,श्वसन उत्तेजक आदि प्रभाव दृष्टिगोचर हुए।

इसी प्रकार मलाशय की कब्ज ,रक्तस्त्रवी रक्तस्राव,को ठीक किया गया।मलेरिया या आंतरिक बुखार ,उल्टी को प्रेरित करके अन्न प्रणाली से अवरोधक सामग्री हटाने मे तंबाकू उपयोगी थी।इसी प्रकार उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान तंबाकू को एथरियल टिंचर ,पोल्टिस और सूंघने में उपचार्थ उपयोग किया गया।बीसवीं शताब्दी में लेनोलिन के साथ मिश्रित जले हुए तंबाकू के पत्तो से बनी एक साल्व को दाद,एथ्लीफूट, सतही अल्सर और घाव ठीक करने के लिए डेसिकेंट उत्तेजक,और एंटीसेप्टिक,एंटीबायोटिक, के रूप में तंबाकू के उपयोग के प्रमाण हैं।

बीसवीं शताब्दी में ही तंबाकू के कीटाणु नासक गुणों की भी बहस जारी रही।जानकर हैरानी होगी की लंदन में फैले प्लेग के रोकथाम में स्कूल के कमरों में तंबाकू का धुंआ को छोड़ा गया था।चेचक के प्रकोप को कम करने के लिए लोगो को तंबाकू सेवन कराने के भी प्रमाण हैं।ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के एक लेख में लिखा गया था कि तंबाकू के धुएं में मौजूद पाएरीडीन यौगिक कीटाणुओ को मारता है।तंबाकू का धुंआ डीपथिरिया ,टायफस ,हैजा,परकिंसन का जोखिम कम करता है।त्वचा रोगों को निकोटीन का इंजेक्शन देकर ठीक करने के भी प्रमाण हैं। पंद्रहवी शताब्दी से लेकर बीसवीं शताब्दी तक यह पूर्णतः सिद्ध किया जा चुका था कि औषधि के रूप में कई मामलों में तंबाकू ने दर्द कम किया है।

यद्यपि बीसवीं शताब्दी से इक्कीसवीं शताब्दी तक आते आते तंबाकू को फॉर्माकोपिया और चिकित्सा पद्धति से लगभग हटा दिया गया,और तंबाकू के घिनौने व्यापार उपयोग शुरू हो गये तंबाकू के उत्पादन का 20प्रतिशत से ज्यादा उपयोग सिगरेट बनाने में किया जाने लगा,बीड़ी,हुक्का ,सिगार द्वारा धूम्रपान का मुख्य घटक तंबाकू हो गया।मादकता , लत ,नासा के रूप में खैनी ,जर्दा ,सुरती,पान मसाला,गुटखा में तंबाकू का सेवन बढ़ता जा रहा था।मेडिकल साइंस ने खोजा की फेफड़ों का कैंसर ,हृदयाघात ,ब्लड प्रेशर,शक्तिहीनता,दमा,अंधापन ,पाचन शक्ति मंद, नपुंसकता,पित्तासय विकृति ,स्नायु दुर्बलता,सरदर्द ,आंखो मे सूखापन ,अनिद्रा ,चिड़चिड़ापन ,भूलने का रोग,दांत पीले वा कमजोर,रक्तविकार,उदासी,टीवी,खांसी,थकान,आदि के लिए तंबाकू सेवन और धूम्रपान उत्तरदाई है। हर 6सेकंड में धूम्रपान से एक मृत्यु हो जाती है।

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एक सिगरेट पीने से 14,मिनिट उम्र घट जाती है,ऐसे आंकड़े डराते हैं।फलस्वरूप विश्व बिरादरी भी आखिर कार जागी और 31मईको अंतर्राष्ट्रीय तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाने लगा। धूम्रपान रोकने को कहा गया। यहां चार बाते समझने लायक है पहली यह कि सर के जूं से लेकर बवासीर तक के इलाज में प्राचीन काल से तंबाकू का उपयोग होता रहा है, हिस्टारिया से लेकर टेटनस तक का इलाज तंबाकू से संभव था तो आखिर क्यों इस औषधि का मुख्य उपयोग व्यसन और नशा के लिए किया जा रहा है।दूसरी बात यह है कि,निकोटीन एक उद्दीपक रसायनिक औषधि है जहां इसका उपयोग औषधि के रूप में होना चाहिए था दुर्भाग्य से यह लत वाली एडिक्शन वाली ड्रग बन गया।

तीसरी बात यह है कि तंबाकू की पत्तियों के रस द्वारा त्वचा विकारों को डंके की चोट पर ठीक किया गया है संभवतः बेसल कैंसर को भी,तो क्या यह शोध का विषय नहीं हो ना चाहिए की क्या तंबाकू में कैंसर रोधी एजेंट हो सकता है,क्योंकि निकोटियाना (तंबाकू)की अन्य प्रजातियों में निकोटीन के अलावा अन्य अल्कलॉइड भी होते हैं ऐसा पेरीविंकल ,(विंका अल्कालोइड)द्वारा सिद्ध भी हुआ है इसमें कैंसर रोधी गुण है।चौथी बात यह कि अभी तक तंबाकू के चिकित्सीय अनुप्रयोग में खुराक काफी हद तक अनियंत्रित थी किसी भी एजेंट के साथ अतिरिक्त खुराक नुकसान पहुंचाएगी।तो क्या तंबाकू से बायो पेस्टीसाइड (जैव कीटाणु नाशक)बनाकर इसको कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है,निकोटीन अवयव का औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है,तंबाकू युक्त दंत मंजन(टूथ पेस्ट)बनाकर ,तंबाकू के धुएं का केवल विसंक्रामक के रूप में अच्छा उपयोग संभव है।

एंटीसेप्टिक, एंटीबायोटिक क्रीम बनाकर तंबाकू का उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है।तंबाकू को जलाने पर धुएं से उत्पन्न होने वाले रसायन ही मानव स्वास्थ्य और उसके स्वसन तंत्र और रक्त संचार को प्रभावित कर सकते हैं तो फिर इसका धूम्रपान में उपयोग बंद होना चाहिए।तंबाकू का बीड़ी सिगरेट बनाने में खूब दुरुपयोग हो चुका है अब समय आ गया है कि हमे तंबाकू धूम्रपान के दुष्परिणाम के पूर्वाग्रह को दूर करना चाहिए और चिकित्सीय अनुप्रयोग के पदार्थो के लिए व्यवस्थित रूप से पत्तियों की जांच करनी चाहिए।गांजा ,अफीम,चरस,भांग,,कोकीन,आदि मादक पदार्थ जितने बदनाम नहीं हुए उतना नाहक बेचारी हर्बल जड़ी बूटी तंबाकू को बदनाम किया जा चुका है।मानव सभ्यता ने तंबाकू का दुरुपयोग ही किया है,अब आवश्यकता है इसके सदुपयोग की जिससे औषधि के रूप में तंबाकू मानव कल्याण में प्रयुक्त होऔर तब31मई को विश्व स्वास्थ्य संगठन ,” अंतर्राष्ट्रीय तंबाकू निषेध दिवस “ना मनाकर “तंबाकू अनुसंधान दिवस “मना सके .तंबाकू दुरुपयोग निषेध दिवस मना सके। धूम्रपान निषेध हो लेकिन औषधि के लिए धूम्र प्रवेश हो।

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