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2 June Ki Roti Means : ‘दो जून की रोटी’ क्यों कहते हैं? इस राज्य से हुई थी शुरुआत 

2 june ki roti

2 June Ki Roti Means : हम रोजाना के बोलचाल में कुछ लोकोकतियों का इस्तेमाल करते हैं। जिनमें कई कहावते इतनी प्रचलित हो जाती हैं कि वो हर किसी की जुबान में रह जाती हैं। इन्हीं में एक है- ‘दो जून की रोटी’। मगर, क्या आपने कभी सोचा है कि दो जून की रोटी क्यों कहा जाता है और इसका मतलब क्या होता है। अगर नहीं, तो आज हम आपको बताएंगे कि ये कहावत केवल एक वाक्य नहीं बल्कि जीवन और आर्थिक सामाजिक चुनौतियों का प्रतीक है। जिससे समाज का हर वर्ग गुजरता है। 

कहाँ से आई ‘2 जून की रोटी’ की कहावत | 2 june ki roti proverb

दरअसल, आज 2 जून 2025 है। इस तारीख को कोई विशेष दिवस नहीं होता फिर भी आज सोशल मीडिया पर ‘दो जून की रोटी’ ट्रेंड कर रहा है। जिससे कुछ लोग भ्रमित हो रहें हैं कि क्या आज रोटी को लेकर कोई विशेष तारीख है? लेकिन ऐसा नहीं है। ‘दो जून की रोटी’ एक कहावत है, जो अवधी भाषा का वाक्य है। ये कहावत उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र से निकली है, जो उत्तर भारत में बोली जाती है। यहां जून का अर्थ महीने के नाम से नहीं बल्कि वक़्त यानी समय से है। अवधी भाषा में जून का मतलब ‘वक़्त या समय’ है। जबकि ‘रोटी’ का मतलब ‘भोजन या खाना’ है। यानी दो जून की रोटी का मतलब ‘दो वक़्त का खाना’ है। यहाँ दो वक़्त सुबह और शाम के लिए बताये गए हैं। 

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2 जून की रोटी का असली अर्थ क्या है? (2 June ki roti)

यहां जून का अर्थ महीने के नाम से नहीं बल्कि वक़्त यानी समय से है। अवधी भाषा में जून का मतलब ‘वक़्त या समय’ है। जबकि ‘रोटी’ का मतलब ‘भोजन या खाना’ है। यानी दो जून की रोटी का मतलब ‘दो वक़्त का खाना’ है। यहाँ दो वक़्त का मतलब सुबह और शाम को खाया जाने वाला भोजन है। इस कहावत का इस्तेमाल तब होता है जब मेहनत कर लोग दो वक़्त के खाने के पैसे जुटा पाते हैं और उनके घर दोनों समय खाना पकता है। इस कहावत को आर्थिक तंगी से जोड़कर बनाया गया है। 

आर्थिक चुनौती से जुड़ी है ये कहावत 

देश में एक समय ऐसा भी था जब लोगों के पास दो समय के खाने के लिए पैसे नहीं हो पाते थे। गरीबी, बेरोजगारी और आर्थिक तंगी की वजह से लोग रोज काम की तलाश में निकलते थे और रोटी के लिए पैसे कमाते थे। तब दोनों समय का खाना खा पाते थे। इसे ही दो जून की रोटी कहते हैं। आज भी कई घरों में खाना पकाने के लिए अनाज नहीं होता है। लोग दो जून की रोटी के लिए मजदूरी कर दिनभर पसीना बहाते हैं। ऐसे लोगों को आर्थिक रूप से कमजोर कहा गया। वहीं, जिस घर में दो जून की रोटी बनती है, उन्हेंआर्थिक रूप से मजबूत माना गया है। 

किताबों में लेखकों ने किया था कहावत का प्रयोग 

‘दो जून की रोटी’ कहावत को प्रचलित करने के लिए साहित्यकारों ने अपनी कहानियो में खूब जगह दी। ख़ासकर मशहूर लेखक मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) और जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) ने अपनी कहानियों और रचनाओं में इस कहावत का इस्तेमाल किया और हिंदी साहित्य में ‘दो जून की रोटी’ कहावत को अहम जगह दिलाई। 

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