Classical musician Pandit Satish Vyas: साज़ों से खेलना आसान नहीं होता वो भी जब नाज़ुक से तारों को फुर्तीली उंगलियों से यूं छेड़ना हों कि कोई तेज़ या धीमा स्वर कानों को न चुभ जाए हमारा जोश कम न कर जाए बस एक सुरीली धुन निकले और नफासत से दिल में उतर जाए और आज हम जिनकी बात कर रहे हैं वो अपनी इस कला में माहिर हैं उनके हाथों में जब संतूर आता है तो लगता है हम खूबसूरत मंज़िल के जानिब पड़ाव दर पड़ाव बढ़ते जा रहे हैं जी हां ये है पंडित सतीश व्यास जिनकी स्वर लहरियों में कोई खोए बिना नहीं रह सकता ,यहां तक कि उन्हें संतूर बजाते हुए देखना भी एक सुखद एहसास है क्योंकि उनकी आंखें देखकर लगता है कि वो खुद को टटोल रहे हैं इम्तेहान ले रहे हैं अपना ये देख रहे हैं कि वो अपनी कला के साथ कितना इंसाफ कर पा रहे हैं और इस बात के गवाह होते हैं हम सब जो उनकी सुर लहरियां की रौ में बहते चले जाते हैं, ताज्जुब की बात है कि उनका ये अंदाज़ न केवल कला प्रेमियों को अपनी ओर खींचता हैं बल्कि अपनी कला में पारंगत लोग भी उनके दीवाने हैं और शायद इसी वजह से उनके प्रशंसक पूरी दुनिया में हैं और शागिर्द भी बढ़ते जा रहे हैं।
भारत सरकार उन्हें पद्मश्री से सम्मानित कर चुकी है और मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में दिए जाने वाले तानसेन पुरस्कार से नवाजा़ है । उन्होंने बताया था कि उनके पिता पंडित सी आर व्यास तीन शैलियों को अपनाया था , किराना ग्वालियर और आगरा जिसकी वजह से आगरा घराने के पंडित जगन्नाथ बुआ पुरोहित उनके गुरुओं में शामिल रहे । संगीत से कैसे जुड़े :- 16 नवंबर 1952 को जन्में सतीश जी वे चेंबूर में रहते हैं वो यूं तो गणित के छात्र थे लेकिन एक बार वो पंडित शिवकुमार शर्मा से मिले जिसके बाद संतूर ने उन्हें आकर्षित कर लिया ,हालांकि उनके पिता पद्म भूषण स्वर्गीय पंडित सी आर व्यास ,उनके पहले गुरु भी थे इसके बावजूद सतीश जी को संगीत में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं थी और ये बात उन्होंने पद्म विभूषण पंडित शिवकुमार शर्मा जी को भी बताई जिनसे फिर उन्होंने संतूर बजाना सीखा ये साल था 1978 का । उनके हिसाब से ये वाद्ययंत्र श्रीनगर से आया है और इसका इतिहास क़रीब 65 साल पुराना है,इसकी आवाज़ बहुत मीठी और सुकून देने वाली है पर शायद इसके 100 तारों को व्यवस्थित करके सलीके से बजाना बेहद मुश्किल है और शायद इसलिए भी कि कलम नाम के स्ट्राइकर से बजाया जाता है। खैर बैंक में जॉब करते हुए उन्होंने इसे सीखना शुरू कर दिया था , और आज वो जिस मकाम पर है वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने बेहद लगन और शिद्दत से संतूर को समझा है। आखिर में हम यही कहेंगे कि वो अपनी अनूठी शैली में यूं ही संतूर के तारों से सुरीले स्वरों की झंकार बिखेरते रहे स्वस्थ रहें और हमें मंत्रमुग्ध करते रहें ।