प्रतिवर्ष अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्रि की शुरूआत होती है. इस वर्ष 15 अक्टूबर को नवरात्रि की बैठकी व 23 अक्टूबर को नवरात्रि की समाप्ति होगी, नवरात्रि के 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ अलग-अलब स्वरूपों की पूजा करने का बड़ा धार्मिक महत्व है. नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की उपासना से माँ प्रसन्न होती है. भक्तों को सुख सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं. नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि को विधिवत कलश स्थापित किया जाता है, और नौ दिनों तक व्रत का संकल्प कर अराधना की जाती है।
साल में कितने नवरात्र होते है?
आमतौर पर हर साल नवरात्र के दो पक्ष आते है. एक चैत नवरात्र प्रतिपदा से दशमी तक, दूसरा शारदेय नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से विजयदशमी तक. अब हम बताएंगे दो और नवरात्र के पक्ष आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से दशमी तक, और नवरात्र माघ शुक्ल प्रतिपदा से दशमी तक आते हैं। इन चारों में चैत्र में पड़ने वाले वासंतिक नवरात्र और आश्विन में आने वाले शारदीय नवरात्र को विशेष माना जाता है. बाकी दो नवरात्र शक्ति पीठों में मनाए जाते हैं. वासंतिक नवरात्र को शयनाख्य और शारदीय नवरात्र को बोधनाख्य कहा जाता है. वासंतिक नवरात्र में शक्ति के साथ भगवान विष्णु की पूजा भी होती है. शारदीय नवरात्र में शक्ति पूजा का विशेष महत्व है.
आइए जानते हैं कैसे हुई नवरात्रि की शुरूआत
पौराणिक कथा के मुताबिक, भगवान शिव के अराधना में लीन महिषासुर नाम का दैत्य अमर होने का वरदान पाकर वह कई देवताओं को सताने लगा था। ब्रह्मा, विष्णु और खुद महेश भी उसे हराने में असमर्थ हो गए थे. महिषासुर के अत्याचार से परेशान होकर सभी देवता ब्रम्हा, विष्णु और महेश के पास जाते हैं.
जिसके बाद सभी देवताओं ने महिषासुर को हराने के लिए आदिशक्ति का आवाहन किया। भगवान विष्णु के क्रोध व अन्य देवताओं के मुख से एक तेज प्रकट हुआ, जो देवी के रूप में अवतरित हुआ। अन्य देवताओं ने उन्हें अस्त्र शस्त्र व अपनी-अपनी शक्तियां प्रदान की। सभी से शक्तियां पाकर मां आदिशक्ति नाम पड़ा, जिसके बाद मां आदिशक्ति भ्रमण करने निकली, जहां महिषासुर मां आदिशक्ति को देख बहुत प्रसन्न हुआ, और विवाह करने का प्रस्ताव रखा, यह सुनकर मां आदिशक्ति ने महिषासुर को युद्ध की चुनौती दी, माँ आदिशक्ति ने कहां युद्ध में अगर तुम्हारी विजय होती है, तब हमारा विवाह होगा।
दोनों के बीच नौ दिनों तक युद्ध चला तब जाके दसवें दिन महिषासुर युद्ध में पराजित हुआ। जिसके पश्चात् मां आदिशक्ति को ‘महिषासुरमर्दिनी’ नाम पड़ा। तभी से मां दुर्गा की शक्ति को समर्पित नवरात्रि का व्रत करते हुए इनके 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है, नवरात्रि की एक मान्यता प्रभु श्रीराम से जुड़ी है. कहा जाता है कि माता सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने और रावण पर विजय पाने के लिए, श्री राम ने देवी मां दुगा का अनुष्ठान लगातार 9 दिन तक किया। अंतिम दिन देवी ने प्रकट होकर श्रीराम को विजय का आशिर्वाद दिया, दसवें दिन श्री राम लक्ष्मण, हनुमान और वानर सेना ने युद्ध में अहंकारी रावण का वध कर दिया। तभी से प्रतिवर्ष अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में नवरात्रि का पर्व एक साथ मनाया जाता है।
नवरात्रि में ‘रात्रि’ पूजा का महत्व
शारदेय नवरात्रि की 9 रातें बहुत खास मानी जाती है. कहते हैं कि इसमें व्यक्ति व्रत, पूजा, मंत्र जाप, संयम, नियम, यज्ञ, तंत्र, त्राटक, योग कर नौ अलौकिक सिद्धियां प्राप्त कर सकता है. पुराणों के अनुसार रात्रि में कई तरह के अवरोध खत्म हो जाते हैं. रात्रि का समय शांत रहता है, इसमें ईश्वर से संपर्क साधना दिन की बजाय ज्यादा प्रभावशाली है. रात्रि के समय देवी दुर्गा की पूजा से शरीर, मन और आत्मा. भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक सुख प्राप्त होता है।